Saturday, March 13, 2010

शाहरूख और ठाकरेः जोड़ी क्या बनाई

-संजय द्विवेदी
बाल ठाकरे, शाहरूख एक साथ दोनों हो तो टीवी चैनलों के न्यूज रूम की रंगत ही बदल जाती है। एक बार बालीबुड की एक अभिनेत्री ने कहा था यहां तो दो ही चीजें बिकती हैं एक सेक्स, दूसरा शाहरूख। लेकिन मीडिया की मंडी में ठाकरे भी बिकता है। बाल हों या राज दोनो चलेगें। इस हफ्ते तो टीवी न्यूज चैनलों का मौजा ही मौजा हो गया। ठाकरे और शाहरूख दोनों को एक साथ पाकर खबरिया चैनल तो धन्य-धन्य हो रहे थे। वाह-वाह रामजी जोड़ी क्या बनाई। सुबह से शाम बस बिकने वाला मसाला। यहां क्या नहीं था। थ्रिल, सस्पेंस और ड्रामा सब मौजूद था। बाकी के लिए शाहरूख की फिल्मों की क्लीपिंग्स और ठाकरे के लिए सरकारराज जैसी फिल्मों के कतरे। सारे एंकर उत्साह में। कुछ भी पूछो, किसी से भी पूछो। इस फिल्मी तमाशे में सब शामिल थे। क्या हीरो-हीरोइन, क्या नेता, क्या जनता, क्या पुलिस। ऐसे अनोखे संयोग घटित कहां होते हैं। टीआरपी की चिंता नहीं थी। विषय की चिंता भी नहीं थी, बस हमें खींचे जाना है।
कोई ठाकरे को थप्पड़ दे रहा था तो कोई उन्हें फ्लाप बता रहा था। सच तो यह है कि मीडिया किसी का नहीं है। कल तक ठाकरे को मुंबई का शेर बताने वाला मीडिया आज उन्हें चूहा साबित करने पर जुटा था। सरकार हैं भी ऐसे, कहां परवाह करते हैं कि कौन क्या कहता है। वे तो जिन्ना साहिब की तरह की डायरेक्ट एक्शन के पक्ष में रहते हैं। डरे लोगों को डराकर अपना सरकारराज चलाते आए ठाकरे साहब को शाहरूख ने थोड़ी हिम्मत क्या दिखाई मीडिया उनके पीछे ही पड़ गया। शाहरूख विदेश में पर देश में कैमरा तो उन्हें ही फालो कर रहा था। ठाकरे और शाहरूख दोनों को ही मजा आ रहा था इस खेल में। उन्हें आमने-सामने आने की क्या जरूरत। मीडिया है न इसके लिए। ऐसा लाइव तमाशा मुंबई ने ताज हमले के बाद ही देखा है। मीडिया इसीलिए ठाकरे परिवार की लंबी आयु की दुआ करता है। वो तो भला हो कि बाला साहब थोड़ा बीमार हैं , इसलिए मीडिया ने राज ठाकरे को नेता बनाया। कल्पना करें अगर टीवी चैनल न होते राज ठाकरे नाम की बीमारी का नाम देशवासी कितने सालों में जान पाते। लेकिन यहां तो सब कुछ तैयार, इंस्टेंट फूड की तरह। राज ठाकरे को मीडिया ने महानायक बना दिया।
मीडिया को लाइव तमाशे भाते हैं। दृश्य माध्यम होने के नाते यह उनकी मजबूरी भी है। उन्हें कुछ ड्रामा और तमाशा चाहिए तभी तो दर्शक बंधकर बैठेगा। टीआरपी भूत तभी पकड़ में आएगा। टीआरपी ऐसी ही आती है। वह बाबा रामदेव से आती है, राखी सावंत से आती है, राजू श्रीवास्तव से आती है और ठाकरे से आती है। इस मंत्र को ठाकरे परिवार ने पकड़ लिया है। वे जानते हैं कि राहुल भैया की तरह गांव की धूल फांकने से क्या होगा, आडवानी की तरह रथयात्राएं करने से क्या होगा, शिवराज सिंह चौहान की तरह यात्राओं से क्या होगा। मातोश्री में बैठो, मनसे के दफ्तर में बैठो अपने गुर्गों को हुकुम दो जाओ दो टैक्सियां तोड़ दो। वे दो टैक्सियां की तोड़फोड़ दिखाकर हम मीडिया वाले आपको महानायक बना देंगें। देखिए और जानिए कि मराठी अस्मिता के लिए किस तरह हम तोड़फोड़ कर रहे हैं। फिर चर्चा, विमर्श के लिए शाम को देश के सारे महा एंकर मैदान में उतर पड़ेंगें। मजा नहीं आ रहा तो शाहरूख, सचिन या अमिताभ के खिलाफ अपने भोंपू पेपर में लिख देते हैं। पेपर पढ़कर भी टीवी न्यूज चैनल वाले खबर बना लेते हैं। काय को टेंशन लेने का। सब बताएंगें कि बाला साहब ने क्या लिखा। सामना पेपर को खरीदने की जरूरत नहीं, मुंबईवासियों पूरा पेपर टीवी वाले पढ़कर बताएंगें। दो रूपए कायकू खर्च करने का, बड़ा पाव खाने का और टीवी देखने का। टीवी वाला सब बताता है,कल मुंबई में क्या होने का। टीवी चैनल के रहते फिकर काहे की। बाल ठाकरे साहब क्या सोचने वाला है यह भी एंकर बताता है। बाकी समझ नहीं आए तो ग्राफिक्स से बताते हैं।
शाहरुख भाई भी समझदार निकले, खुद तो फिल्म के प्रोमोशन के लिए विदेश चले गए। देश में फिल्म का ठेका ठाकरे भाई को दे गए अंकल, फिल्म हिट करा दो। सो बालासाहब लग गए बोले फिल्म से कोई विरोध नहीं, सारा झगड़ा शाहरूख से है। फिल्म नहीं चलेगी। बाल ठाकरे सहित पूरी महाराष्ट्र सरकार फिल्म के प्रोमोशन में लग गयी। देखा भाई कितना सयाणा है अपना किंग खान। पूरी मुंबई को बेवकूफ बनाकर अपना पिक्चर बेच दिया। मीडिया वाले भाई भी सहप्रयोजक हो गए। मीडिया को लगता है वह शाहरूख को इस्तेमाल कर रहा है, हमें लगता है कि भाई कोई घाटे में नहीं सबने सबको इस्तेमाल किया। ठाकरे, शाहरूख और मीडिया तीनों को एक दूसरे का शुक्रगुजार होना चाहिए। क्योंकि ये हैं ही एक-दूजे के लिए। हमारी दुआ है कि वेलेटाइन डे की वेला पर इनका प्यार और बढ़े धंधा व रोजगार बढ़े। इसी में सबकी रोजी रोटी चलती रहेगी। बोलिए टीआरपी महारानी की जय।

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